हम अलग सही आज के दौर मे... पर कैसे भूलूं मैं वो राहें... चलते थे साथ कदम, चलती थी साँसें ... बताओ क्या बदला है इस जिन्दगी मे.. पहले जगते थे तेरे प्यार मे.. अब बस इंतज़ार मैं कटती है रातें,,, मिल लेता था तुझसे तब रू-बा-रू, और अब तस्वीर से होती है बातें... तभी मेरा दिल तेरे लिए आज भी धड़कता है.. तेरे नाम पे न जाने कितना तड़पता है.. कहता है जब कोई तुझे बेवफा, रोटी है आँखें, हाँ सच रोती है आँखें...
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बेवफा न वो न मैं, हम अपने करम निभाते रहे...
मैं सहता रहा सितम सारे, और वो सितम ढाते रहे...
किस बात की कहानी कहूँ, किस बात के फ़साने सुनाऊं ..
लिखता रहा नाम जो दिल पे, वो दिल से सनम मिटाते रहे...
इस गली फिर उस गली मैं, पैरों पे जुल्म करते चला..
कहता गया उन्हें मैं अपना, वो गैरों को अहम् बताते रहे..
नज़रों मैं बचे एहसास उसकी निशानी बना संभाले..
मैं रोया ग़म-ए-जुदाई पे, वो नूर-ए-चश्म* बहाते रहे...
*आँखों की चमक
प्यासी राहों से क्या पूछूँ पता दर-ए-मुहब्बत का..
रहे सँभालते काँटों पे, वो बेरहम बिछाते रहे..
आसरा उनका कहाँ खुदा भी, जो किये 'सच्चा_प्यार' यहाँ...
हम मिट गए उनकी चाहत मे, और वो वहम बताते रहे...
हाँ बेवफा वो कैसे, उसने बेवफाई से वफ़ा तो की यार..
इल्लत* मेरी भी खूब कहो, वफ़ा उनसे हरदम निभाते रहे...
मैं सहता रहा सितम सारे, और वो सितम ढाते रहे...
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कुनाल (सिफर) :- ३०-८-२००६
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