Jul 31, 2010

आग इधर है जो, उधर कैसे हो ...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल आप सबकी नज़र कर रहा हूँ... उम्मीद है आप अपनी आरा से ज़रूर नवाजेंगे...

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बहर:- सरी मुसद्दस मतवी मक्सूफ़ ( 2112 2112 212 )
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झूठी दुआओं मे असर कैसे हो ...
ख्वाबों की दुनिया मे बसर कैसे हो ...

बंट गयी टुकड़ों मे सनम जिंदगी...
अब कोई भी अर्ज़-ए-हुनर कैसे हो ..

सोच सियासत से भरी है यहाँ
आग इधर है जो, उधर कैसे हो ....

उनको है डर ये, जी उठूँगा मैं फिर ...
पूछ ले वो मुझसे, अगर कैसे हो ..

मेरी तरह रोते है हमदम मेरे ...
उजली हुई उनकी, नज़र कैसे हो ...

ख्यालों मे भी ख्याल यही रह गया ..
जिस्म मे ये साँसें 'सिफ़र' कैसे हो ..

दोस्त भी दुश्मन भी पीछे चल पड़े....
इससे हंसी कोई सफ़र कैसे हो ...

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कुनाल (सिफ़र) :- ०१-०८-२०१०
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Jul 5, 2010

कदम फिसलते होंगे...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल महफ़िल की नज़र कर रहा हूँ .. आप सब अपने इज़हार-ए-ख्याल ज़रूर अता फरमाएंगे उम्मीद रहेगी...

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बहर:- हज़ज मुसद्दस अखरब मक्बूज़ महजूफ (221 1212 122 - गिनती मे)
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आँखों मे नमी सी रखते होंगे..
कुछ रस्तों को जब भी तकते होंगे..

लहरों मे कमी सी लगती होगी...
साहिल पे कदम फिसलते होंगे...

यादों की मज़ार दिल मे लेकर ...
गैरों से गले वो मिलते होंगे ...

दीदार किये जमाने गुज़रे...
अब सोच के दम निकलते होंगे ..

रब्बा मेरे तू सुकूँ दे उनको ..
अरमां कई दिल मे जलते होंगे...

घटती हुई उम्र कह रही है..
मौसम तेज़ी से बदलते होंगे..

उम्मीद है आखिरी सफ़र मे ...
वो साथ 'सिफ़र' के चलते होंगे ..

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कुनाल (सिफ़र) :- 06-07-2010
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