May 31, 2010

चला हूँ मैं, चले हो तुम धीरे धीरे ....!

======================
बहर: हजाज़ सालिम ( १२२२ १२२२ १२२२)
======================

चला हूँ मैं, चले हो तुम धीरे धीरे ..
नज़र भी होगी, यूँ ही नम धीरे धीरे...

दीवाने गर है तन्हाई के दोनों हम,
होगा महसूस दर्द-ओ-ग़म धीरे धीरे...

ठहर के जाम होंटों से लगाना तुम ...
चडेगा सर नशा, जानम धीरे धीरे ...

अधुरा इश्क तेरा तोहफा मुझको...
ख़ुशी से जा मिला मातम धीरे धीरे...

कहानी फिर कोई ले मोड़ मुश्किल सा ...
'सिफ़र' ये निकले मेरा दम धीरे धीरे ...

और ...

नहीं ग़मगीन, गर है जिंदगी ताविल...
ग़म-ए-फुरक़त भी होगा कम धीरे धीरे...

========================
कुनाल (सिफ़र) :- ३१-०५-२०१०

May 14, 2010

यूँ ही कलम रोई बस...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल बहर-ए-मुजारी मुसम्मन अखरब मे आप सबकी नज़र कर रहा हूँ ... ये बहर के हर मिश्रे मे एक अनिवार्य रुकाव (//)होता है ... उम्मीद है आप अपनी आरा से नवाजेंगे..

=========================
बहर :- मुजारी मुसम्मन अखरब ( 221 2122 // 221 2122 (In Digit)
=========================

यूँ ही कलम रोई बस, यूँ ही कलाम रोया...
हालत पे मेरी सारा, आलम तमाम रोया..

होता नहीं नशा क्यूँ, साकी जो पूछ बैठा..
देके बोसा* होंटो को, महफ़िल मे जाम रोया...

यूँ छाई थी बेचैनी, हर बात पर हैरां था..
फिर अपनी ही मैं नींदे, करके हराम रोया..

आया नहीं जो जाकर, काज़िब* से रिश्ते पाकर..
मैं बरसों बाद उसका, पढके सलाम रोया..

दस्तूर है जमाने, अब ज़ख्मों का तमाशा...
मजबूरी का 'सिफ़र' भी, बन के गुलाम रोया..

और...

टूटा हुआ सितारा, क्या मांगते खुदा से ..
तेरा ही दर पे उसके, लेके मैं नाम रोया..

======================
कुनाल (सिफ़र) :- ०६-०५-2
======================


*बोसा ========= चूमना
*काज़िब ======== झूठा