Jun 13, 2010

जिंदगी से दूर कर दिया...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल आप सबकी नज़र कर रहा हूँ... उम्मीद है आप अपनी आरा से ज़रूर नवाजेंगे...

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बहर:- मुज़ारी मुसम्मन अखरब मख्फूफ़ महज़ूफ़ (2 2 1   2 1 2 1   1 2 2 1    2 1 2 )
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मजबूरी ने ऐसे हमें मजबूर कर दिया...
इस जिंदगी मे, जिंदगी से दूर कर दिया..

पलके कमाल करती है उसके जमाल पर..
रो रो के हमने चेहरे को बेनूर कर दिया...

कहते थे चाँद तो कभी कहते खुदा भी थे..
हाँ इश्क ने ही हुस्न को मग़रूर कर दिया...

कितने हुए तमाम मोहब्बत की राह मे..
हमको तो इसके ग़म ने भी मसरूर* कर दिया...

शिद्दत से हमपे उसने किये थे करम बोहत
उसने सितम भी हमपे ही भरपूर कर दिया...

वो दूर जाके अपनी ही किस्मत बनाएगा...
इस दर्द ने 'सिफर' को भी मशहूर कर दिया..


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कुनाल (सिफ़र) :- १४-०६-२०१०
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