Nov 19, 2009

हाँ तुम वही तो हो...!

एक नज़्म जैसा है .. बहर की तकनीक से बोहत दूर.. बस सीधे ख्याल .....!

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तुम वो ही तो हो...

जो एक रोज़ यूँ ही
मिल गयी थी कहीं...
अचानक से नज़रें
बस खुल गयी थी वहीँ...

जो एक हवा के जैसे
साँसों से टकराई
और धुल से मिल कर..
तस्वीर सी उभर आई..

तुम वो ही तो हो...

जो एक सफ़र मे
साथी सी लगी मुझे...
जाने कितने बरसों की
जागी सी लगी मुझे...

की सपनो मैं दुनिया...
जो बनाती चली गयी,,
एक सबक नया हरदिन
जो सिखाती चली गयी,,

तुम वो ही तो हो...

जिसने मुझे गिराया था
हर बार उठाने के लिए...
बिगाड़ा था मेरी रातों को
मेरे दिन बनाने के लिए...

की तुमसे ही तो सीखा है..
खुदा भी कोई चीज़ है .
जो हमे बच्चा बना पाले
जिसके लिए हम अज़ीज़ है ..

तुम वो ही तो हो...

जो थक कर कभी मायूस ,...
कोने मैं बैठ जाती हो..
की तुम्हे है शिकवा मुझसे..
ये कहाँ तुम कभी बताती हो..

की तेरे आंसू भी तो...
कभी बहते देखे है मैंने...
चमकते हुए रंग वफ़ा के..
भी हज़ारों देखे है मैंने...

तुम वो ही तो हो...

जो मुहं फेर कर भी..
सोचती है मेरे ख्याल को..
ख़ामोशी का तोहफा देती है ..
मेरे हर उलझे सवाल को ...

जल जाऊंगा मे एक आग मे..
ये सोच सब कह भी देती हो..
और कितने तीर मेरी जुबान के
चुप चाप सह भी लेती हो..

तुम वो ही तो हो...

जिसे एक बार भी तो...
मैंने देखा नहीं है...
जानता हूँ ये भी की तुमसे
खूबसूरत कोई चेहरा नहीं है...

की बादलों के पार कहीं..
मेरी पहुँच से दूर हो तुम..
मेरी सांसे है तुमसे ही...
मेरे जिस्म का नूर हो तुम,..

तुम वो ही तो हो...

जो एक रोज़ चली जाओगी..
मेरे वजूद की कहानी को लेकर
ये बढती हुई उम्र और ,..
ये घटती हुई जवानी को लेकर...

की तुम भी आत्मा भी तो..
मुझमे कहीं रह नहीं सकती..
साँसों की धारा भी ये 'सिफ़र'..
जिस्म मे और बह नहीं सकती...

तुम वो ही तो हो...

पर तुम्हारा नहीं कही,,
जिन्दगी का जिक्र था ये सारा...
वो बात और है की ..
तुम ही मेरी जिन्दगी तो हो

हाँ तुम वही तो हो...

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कुनाल (सिफ़र)


Nov 2, 2009

बस गया वो आखिरी सदमा नज़र मे...!

आदाब अर्ज़ है...

एक ताज़ा ग़ज़ल को रमाल बहर मे अपनी जानिब से अदा कर रहा हूँ,.. . शुरुवात अपनी इल्लत से मजबूर ख्याल से ही करूँगा...

Behar:- Ramaal (2122 2122 2122)(GalGaGa GalGaGa GalGaGa)
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ख्याल :-
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यादों ने फिर आज मुझे घेरा है ... उस कोने मे मेरा बसेरा है... जहाँ तू आया नहीं कभी .. वहां हर ख्याल तेरा है... ए तन्हाई न आहों को मेरी इतनी जगह दो.. ये बस जाए यही इतनी पनाह दो.. थोडी देर और पास मेरे बैठो ... की दूर अभी सवेरा है.. हाँ उस कमरे के कोने पे मेरा बसेरा है .. यादों ने फिर आज मुझको घेरा है ...

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ग़ज़ल :-
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चल रहा है यादों का मजमा नज़र मे..
आंसुओं का हौले से थमना नज़र मे ..

आखिर-ए-शब् हो, ये अनवार-ए-इलाही..
आफताब-ए-ग़म फ़क़त, खिलना नज़र मे...

इन खतों से है गिरे, अरमां मेरे ही...
बेरहम इनका यूँ फिर जलना नज़र मे ..

वो खुदा भी है खफा मुझसे सितमगर ..
बेवफा का पढ़ लिया कलमा नज़र मे..

पी रहा हूँ यार, जाम-ए-ग़म मे कब से...
लाज़मी है कुछ नशा मिलना नज़र मे ..

गर ख़ुशी मेरी, सुकून देती 'सिफर'*बस..
देख पल पल, ये मेरा मरना नज़र मे ..

अलविदा कहना तेरा बोसा* मुझे कर...
बस गया वो आखिरी सदमा नज़र मे..

ढल गया है यादों का मजमा नज़र मे..
आंसुओं का धीरे से मरना नज़र मे .

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कुनाल (सिफर) :- ०३-११-२००९
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* आखिर-ए-शब् ============== रात का अंत
* अनवार-ए-इलाही ============ इस्वरीय रौशनी,
* आफताब-ए-ग़म ============= ग़म का सूरज
* फ़क़त ==================== सिर्फ
* जाम-ए-ग़म ================ ग़म का प्याला
* सिफर ==================== शुन्य
* बोसा ===================== चूमना

Nov 1, 2009

आतंक कि शाम मांगता है ....!

कभी मस्जिद का तो कभी मंदिर का नाम मांगता है..
कागजी माया के लिए मुल्ला रहीम, पंडित राम मांगता है...

जीवन का हर पल मर के काटती है वो गरीब माँ....
भूक से बिलखता बच्चा रोटी जब सरे आम मांगता है ...

पड़ते है छाले चलते चलते, नौजवान क़दमों मैं..
कैसे हाथ जोड़ बेरोजगार सेठों से काम मांगता है...

कभी नहीं आते अपने गर्दिश मैं साथ देने यहाँ किसीका ...
बिन सोचे हालत-ए-रूह, हर रिश्ता अपना दाम मांगता है...

भीगे कच्ची राह पे तकती है वो सुहागन रास्ता जिसका..
उसका शोहर सरहद पे मिट, आतंक कि शाम मांगता है ...

थक जाता है वो भूडा बाप बेटी कि शादी मैं बिकते बिकते,
बेखौफ खुदा से ससुराल उसका, दहेज़ तमाम मांगता है...

दिल कि लगी को दिल्लगी बना के हंसते है तुमपे सिफर..
इश्क मैं लुटा आशिक, मयकदे मैं जाम मांगता है..

कहाँ तक देखे कोई जहाँ के गुनाहों को पर्दा डाल,
हमारा दिल ऊब चूका जो बस आपसे सलाम मांगता है...

क्यूँ मुल्ला रहीम पंडित राम मांगता है...
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कुनाल (सिफर)
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