Jul 26, 2011

Zaraa Saa ...!


Salaam...!
Ek lambe arse ke baad aaya huN bazm maiN.. aur likh bhi arse baad hi raha huN.. Aur behr bhi ye pehli baar use kar raha huN .. aur badi jaldi main likh ke le aaya huN ...umeed hai aap sab apni aara se nawaazeNge.. aur khamiyoN ko behichak bayaan karenge ...
Meter :- 2 2 1 - 2 2  //  2 2 1 -  2 2 
=======================

हमको है हमसे शिकवा ज़रा सा ...
होता है सब कुछ, मिलता ज़रा सा ...

होती है फितरत, दुनिया मे सबकी ...
बातें बड़ी पर, जज्बा ज़रा सा...

तौबा का कोई, मतलब नहीं अब ...
पहले खुदा से, डरता ज़रा सा ...

है पास मंजिल, गर सामने तो ...
कटता नहीं क्यूँ, रस्ता ज़रा सा ..

मर जायेंगे अब, आशिक यहाँ पर..
रुख पे करो तुम, पर्दा ज़रा सा,,

मिलना बिछड़ना, मुझसे तू अक्सर...
रिश्ता तू चाहे, रखना ज़रा सा...

और ....!

आलम 'सिफ़र' की, ग़ज़लों का आला ...
बाहर बहर से, मक्ता ज़रा सा... 


-------------------------


Humko hai humse, shikwa zara saa…
Hota hai sab kuch, milta zara saa…

Hoti hai fitrat, duniaa main sabki
BaateN badi par, jazba zara saa …

Tauba ka koi, matlab nahi ab ..
Pehle khuda se, darta zara saa…

Hai paas manzil, gar samne to..
Kat-ta nahi kyuN, Rasta zaraa saa..

Mar jaayeNge ab, Aashiq yahaN par..
Rukh pe karo tum, Parda Zara saa,…

Milna bichadna, mujhse tu aksar..
Rishta tu chaahe, Rakhna zara saa..

Aur ..!

Aalam ‘sifar’ ki, ghazloN ka aalaa…
Baahar beh’r se, maqta zara saa…

===========================
Kunaal:- 26-07-
2011
===========================



Aug 19, 2010

इश्क करता है इंतज़ार आजा..

एक नया गीत आपकी नज़र है ... इसका वजन "तुमको देखा तो ये ख्याल आया" जो जगजीत साहब कि मशहूर ग़ज़ल है वही है ....

बह'र:- काफीफ़ मुसद्दस मखबून महजूफ मकतू  (2122-1212-22 - अंको मे )


========================

इश्क करता है इंतज़ार आजा...
मुझको भी तुझसे ही है प्यार आजा..

रुकते है चलते है कदम तन्हा ...
जिंदगी का सफ़र हुआ तन्हा ...
रहते पल पल हैं बेकरार आजा ...

इश्क करता है इंतज़ार आजा ...

ख्वाबों को राहों मे बिछा दूंगा
पलकों मे तुझको यूँ छुपा लूँगा
तुझको देखूं मैं बेशुमार आजा ...

इश्क करता है इंतज़ार आजा..

अब तो पल पल ही मेरी जाँ जाए ..
दूरियां भी न अब सही जाए ..
जी लूँ करके तेरा दीदार आजा

इश्क करता है इंतज़ार आजा ...

इस मोहब्बत की तू कहानी है ...
गर दिवाना मैं तू दिवानी है..
जुल्फ तेरी दूँ मैं संवार आजा..

इश्क करता है इंतज़ार आजा...

जाम खाली है दिल भी खाली है
आज किस्मत भी आजमा ली है ...
बन के महफ़िल मे तू बहार आजा...

इश्क करता है इंतज़ार आजा..

========================
कुनाल (सिफर) 

Aug 6, 2010

किस्मत भी कहानी है....!

आदाब...

एक नयी ग़ज़ल बज़्म के नज़र कर रहा हूँ , बहर-ए-हजाज मुसम्मन अखरब मे उम्मीद है आप अपनी आरा से ज़रूर नवाजेंगे... इसी बहर मैं एक मशहूर गीत है,.. साथ गुनगुना के देखिएगा शायद अच्छा लगे...

टूटे हुए ख्वाबों ने, हमको ये सिखाया है...
दिल ने जिसे पाया था, आँखों ने गंवाया है ...

बहर गिनती मे :- 221 1222 221 1222

==========================

क्या इश्क की हस्ती है, क्यूँ आँखें बरसती है ...
ये शाम भी तुमसे ही, मिलने को तरसती है...

अब टूट चुके मेरे, अरमां वो मोहब्बत के,..
उम्मीद न महफ़िल से, तन्हाई भी डसती है ,...

टकरा के निकल जाते, हम दर्द की राहों से ...
पर बीच मे आती क्यूँ, यादों की वो बस्ती है ...

वो बात ही करते है, बस चाँद सितारों की..
इस इश्क के सौदे मे, ये जान भी सस्ती है,..

हासिल थे 'सिफ़र' हमको, अपनों से मिले रिश्ते,...
साहिल पे जो अब डूबी, वो प्यार की कश्ती है ...

वादे तो किये थे हम, अब साथ सदा होंगे..
किस्मत भी कहानी है, हर मोड़ पे फंसती है...

==========================
कुनाल (सिफ़र) :- 07-08-2010
==========================

Jul 31, 2010

आग इधर है जो, उधर कैसे हो ...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल आप सबकी नज़र कर रहा हूँ... उम्मीद है आप अपनी आरा से ज़रूर नवाजेंगे...

=====================
बहर:- सरी मुसद्दस मतवी मक्सूफ़ ( 2112 2112 212 )
=====================

झूठी दुआओं मे असर कैसे हो ...
ख्वाबों की दुनिया मे बसर कैसे हो ...

बंट गयी टुकड़ों मे सनम जिंदगी...
अब कोई भी अर्ज़-ए-हुनर कैसे हो ..

सोच सियासत से भरी है यहाँ
आग इधर है जो, उधर कैसे हो ....

उनको है डर ये, जी उठूँगा मैं फिर ...
पूछ ले वो मुझसे, अगर कैसे हो ..

मेरी तरह रोते है हमदम मेरे ...
उजली हुई उनकी, नज़र कैसे हो ...

ख्यालों मे भी ख्याल यही रह गया ..
जिस्म मे ये साँसें 'सिफ़र' कैसे हो ..

दोस्त भी दुश्मन भी पीछे चल पड़े....
इससे हंसी कोई सफ़र कैसे हो ...

=====================
कुनाल (सिफ़र) :- ०१-०८-२०१०
=====================

Jul 5, 2010

कदम फिसलते होंगे...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल महफ़िल की नज़र कर रहा हूँ .. आप सब अपने इज़हार-ए-ख्याल ज़रूर अता फरमाएंगे उम्मीद रहेगी...

-------------------------------------
बहर:- हज़ज मुसद्दस अखरब मक्बूज़ महजूफ (221 1212 122 - गिनती मे)
--------------------------------------

आँखों मे नमी सी रखते होंगे..
कुछ रस्तों को जब भी तकते होंगे..

लहरों मे कमी सी लगती होगी...
साहिल पे कदम फिसलते होंगे...

यादों की मज़ार दिल मे लेकर ...
गैरों से गले वो मिलते होंगे ...

दीदार किये जमाने गुज़रे...
अब सोच के दम निकलते होंगे ..

रब्बा मेरे तू सुकूँ दे उनको ..
अरमां कई दिल मे जलते होंगे...

घटती हुई उम्र कह रही है..
मौसम तेज़ी से बदलते होंगे..

उम्मीद है आखिरी सफ़र मे ...
वो साथ 'सिफ़र' के चलते होंगे ..

-----------------------------------------
कुनाल (सिफ़र) :- 06-07-2010
-----------------------------------------

Jun 13, 2010

जिंदगी से दूर कर दिया...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल आप सबकी नज़र कर रहा हूँ... उम्मीद है आप अपनी आरा से ज़रूर नवाजेंगे...

==============================
बहर:- मुज़ारी मुसम्मन अखरब मख्फूफ़ महज़ूफ़ (2 2 1   2 1 2 1   1 2 2 1    2 1 2 )
===============================


मजबूरी ने ऐसे हमें मजबूर कर दिया...
इस जिंदगी मे, जिंदगी से दूर कर दिया..

पलके कमाल करती है उसके जमाल पर..
रो रो के हमने चेहरे को बेनूर कर दिया...

कहते थे चाँद तो कभी कहते खुदा भी थे..
हाँ इश्क ने ही हुस्न को मग़रूर कर दिया...

कितने हुए तमाम मोहब्बत की राह मे..
हमको तो इसके ग़म ने भी मसरूर* कर दिया...

शिद्दत से हमपे उसने किये थे करम बोहत
उसने सितम भी हमपे ही भरपूर कर दिया...

वो दूर जाके अपनी ही किस्मत बनाएगा...
इस दर्द ने 'सिफर' को भी मशहूर कर दिया..


============================
कुनाल (सिफ़र) :- १४-०६-२०१०
=============================

May 31, 2010

चला हूँ मैं, चले हो तुम धीरे धीरे ....!

======================
बहर: हजाज़ सालिम ( १२२२ १२२२ १२२२)
======================

चला हूँ मैं, चले हो तुम धीरे धीरे ..
नज़र भी होगी, यूँ ही नम धीरे धीरे...

दीवाने गर है तन्हाई के दोनों हम,
होगा महसूस दर्द-ओ-ग़म धीरे धीरे...

ठहर के जाम होंटों से लगाना तुम ...
चडेगा सर नशा, जानम धीरे धीरे ...

अधुरा इश्क तेरा तोहफा मुझको...
ख़ुशी से जा मिला मातम धीरे धीरे...

कहानी फिर कोई ले मोड़ मुश्किल सा ...
'सिफ़र' ये निकले मेरा दम धीरे धीरे ...

और ...

नहीं ग़मगीन, गर है जिंदगी ताविल...
ग़म-ए-फुरक़त भी होगा कम धीरे धीरे...

========================
कुनाल (सिफ़र) :- ३१-०५-२०१०