आज बस यूँ ही मन किया की मैं भी अपना एक आशियाना बनों .. तो बस इस तरफ चला आया... और देख मेरे खुदा ... अपने आपको मैंने खोदा है तो क्या पाया है... वही जो बस उस वक़्त जेहन मैं आया .. जब साँसों ने चलने से इनकार कर दिया था.. पर न जाने क्यूँ.. तब भी एतबार था उस अजनबी पे ... जो कभी अपना बना . और आज भी एतबार है उस पे जो अपना होके फिर अजनबी बन गया,.. मेरे खुदा बस यही इल्तेजा है मेरी .. मुझे मुझमे मरने दो ... और लफ्जों मैं ढलने दो...
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मेरा होकर भी खुद को गैर का बताने वाले...
दूर कैसे जाओगे मुझसे 'ए' हाथ छुडाने वाले..
कोई हमदम न मिलेगा तुमको हमसा यहाँ...
हम तो मिटे शौक से, अब मिलेंगे मिटाने वाले..!
किस बात का गुनाहगार बना दिया इस जान को...
नफरत यूँ मिली हमें, जुदा हुए मनाने वाले...!
हमें नहीं ग़म, न शिकायत है कोई इस सजा से ...
खुदा जाने इनमे कितने है, हम दिन बिताने वाले...!
पर है एक वादा तुझसे भी ए सितमगर हसीं
अश्क गिरेंगे तुम्हारे भी, भले हो वो दिखाने वाले...!
और..
खुश कैसे रहेगा तू, गर था तेरा 'सच्चा प्यार'..
तेरा दिल भी कटेगा, मुझ पे खंजर चलाने वाले
और सच कहो दूर कैसे जाओगे, ए हाथ छुडाने वाले...!
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कुनाल (सिफर) :- १९ जुलाई २००५
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