आदाब...
एक नयी ग़ज़ल बज़्म के नज़र कर रहा हूँ , बहर-ए-हजाज मुसम्मन अखरब मे उम्मीद है आप अपनी आरा से ज़रूर नवाजेंगे... इसी बहर मैं एक मशहूर गीत है,.. साथ गुनगुना के देखिएगा शायद अच्छा लगे...
टूटे हुए ख्वाबों ने, हमको ये सिखाया है...
दिल ने जिसे पाया था, आँखों ने गंवाया है ...
बहर गिनती मे :- 221 1222 221 1222
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क्या इश्क की हस्ती है, क्यूँ आँखें बरसती है ...
ये शाम भी तुमसे ही, मिलने को तरसती है...
अब टूट चुके मेरे, अरमां वो मोहब्बत के,..
उम्मीद न महफ़िल से, तन्हाई भी डसती है ,...
टकरा के निकल जाते, हम दर्द की राहों से ...
पर बीच मे आती क्यूँ, यादों की वो बस्ती है ...
वो बात ही करते है, बस चाँद सितारों की..
इस इश्क के सौदे मे, ये जान भी सस्ती है,..
हासिल थे 'सिफ़र' हमको, अपनों से मिले रिश्ते,...
साहिल पे जो अब डूबी, वो प्यार की कश्ती है ...
वादे तो किये थे हम, अब साथ सदा होंगे..
किस्मत भी कहानी है, हर मोड़ पे फंसती है...
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कुनाल (सिफ़र) :- 07-08-2010
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