Jul 5, 2010

कदम फिसलते होंगे...!

आदाब,

एक ताज़ा ग़ज़ल महफ़िल की नज़र कर रहा हूँ .. आप सब अपने इज़हार-ए-ख्याल ज़रूर अता फरमाएंगे उम्मीद रहेगी...

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बहर:- हज़ज मुसद्दस अखरब मक्बूज़ महजूफ (221 1212 122 - गिनती मे)
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आँखों मे नमी सी रखते होंगे..
कुछ रस्तों को जब भी तकते होंगे..

लहरों मे कमी सी लगती होगी...
साहिल पे कदम फिसलते होंगे...

यादों की मज़ार दिल मे लेकर ...
गैरों से गले वो मिलते होंगे ...

दीदार किये जमाने गुज़रे...
अब सोच के दम निकलते होंगे ..

रब्बा मेरे तू सुकूँ दे उनको ..
अरमां कई दिल मे जलते होंगे...

घटती हुई उम्र कह रही है..
मौसम तेज़ी से बदलते होंगे..

उम्मीद है आखिरी सफ़र मे ...
वो साथ 'सिफ़र' के चलते होंगे ..

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कुनाल (सिफ़र) :- 06-07-2010
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