एक नज़्म जैसा है .. बहर की तकनीक से बोहत दूर.. बस सीधे ख्याल .....!
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तुम वो ही तो हो...
जो एक रोज़ यूँ ही
मिल गयी थी कहीं...
अचानक से नज़रें
बस खुल गयी थी वहीँ...
जो एक हवा के जैसे
साँसों से टकराई
और धुल से मिल कर..
तस्वीर सी उभर आई..
तुम वो ही तो हो...
जो एक सफ़र मे
साथी सी लगी मुझे...
जाने कितने बरसों की
जागी सी लगी मुझे...
की सपनो मैं दुनिया...
जो बनाती चली गयी,,
एक सबक नया हरदिन
जो सिखाती चली गयी,,
तुम वो ही तो हो...
जिसने मुझे गिराया था
हर बार उठाने के लिए...
बिगाड़ा था मेरी रातों को
मेरे दिन बनाने के लिए...
की तुमसे ही तो सीखा है..
खुदा भी कोई चीज़ है .
जो हमे बच्चा बना पाले
जिसके लिए हम अज़ीज़ है ..
तुम वो ही तो हो...
जो थक कर कभी मायूस ,...
कोने मैं बैठ जाती हो..
की तुम्हे है शिकवा मुझसे..
ये कहाँ तुम कभी बताती हो..
की तेरे आंसू भी तो...
कभी बहते देखे है मैंने...
चमकते हुए रंग वफ़ा के..
भी हज़ारों देखे है मैंने...
तुम वो ही तो हो...
जो मुहं फेर कर भी..
सोचती है मेरे ख्याल को..
ख़ामोशी का तोहफा देती है ..
मेरे हर उलझे सवाल को ...
जल जाऊंगा मे एक आग मे..
ये सोच सब कह भी देती हो..
और कितने तीर मेरी जुबान के
चुप चाप सह भी लेती हो..
तुम वो ही तो हो...
जिसे एक बार भी तो...
मैंने देखा नहीं है...
जानता हूँ ये भी की तुमसे
खूबसूरत कोई चेहरा नहीं है...
की बादलों के पार कहीं..
मेरी पहुँच से दूर हो तुम..
मेरी सांसे है तुमसे ही...
मेरे जिस्म का नूर हो तुम,..
तुम वो ही तो हो...
जो एक रोज़ चली जाओगी..
मेरे वजूद की कहानी को लेकर
ये बढती हुई उम्र और ,..
ये घटती हुई जवानी को लेकर...
की तुम भी आत्मा भी तो..
मुझमे कहीं रह नहीं सकती..
साँसों की धारा भी ये 'सिफ़र'..
जिस्म मे और बह नहीं सकती...
तुम वो ही तो हो...
पर तुम्हारा नहीं कही,,
जिन्दगी का जिक्र था ये सारा...
वो बात और है की ..
तुम ही मेरी जिन्दगी तो हो
हाँ तुम वही तो हो...
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कुनाल (सिफ़र)
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