कभी मस्जिद का तो कभी मंदिर का नाम मांगता है..
कागजी माया के लिए मुल्ला रहीम, पंडित राम मांगता है...
जीवन का हर पल मर के काटती है वो गरीब माँ....
भूक से बिलखता बच्चा रोटी जब सरे आम मांगता है ...
पड़ते है छाले चलते चलते, नौजवान क़दमों मैं..
कैसे हाथ जोड़ बेरोजगार सेठों से काम मांगता है...
कभी नहीं आते अपने गर्दिश मैं साथ देने यहाँ किसीका ...
बिन सोचे हालत-ए-रूह, हर रिश्ता अपना दाम मांगता है...
भीगे कच्ची राह पे तकती है वो सुहागन रास्ता जिसका..
उसका शोहर सरहद पे मिट, आतंक कि शाम मांगता है ...
थक जाता है वो भूडा बाप बेटी कि शादी मैं बिकते बिकते,
बेखौफ खुदा से ससुराल उसका, दहेज़ तमाम मांगता है...
दिल कि लगी को दिल्लगी बना के हंसते है तुमपे सिफर..
इश्क मैं लुटा आशिक, मयकदे मैं जाम मांगता है..
कहाँ तक देखे कोई जहाँ के गुनाहों को पर्दा डाल,
हमारा दिल ऊब चूका जो बस आपसे सलाम मांगता है...
क्यूँ मुल्ला रहीम पंडित राम मांगता है...
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कुनाल (सिफर)
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bahut badhiya bahut badhiya..
ReplyDeletesach kaha dost..kadwa sach....